Iftikhar Arif Shayari in Hindi - Latest collection
خواب کی طرح بکھر جانے کو جی چاہتا ہے
ایسی تنہائی کہ مر جانے کو جی چاہتا ہے
افتخار عارف
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
خود کو بکھرتے دیکھتے ہیں کچھ کر نہیں پاتے ہیں
پھر بھی لوگ خداؤں جیسی باتیں کرتے ہیں
افتخار عارف
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
دل پاگل ہے روز نئی نادانی کرتا ہے
آگ میں آگ ملاتا ہے پھر پانی کرتا ہے
افتخار عارف
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
تم سے بچھڑ کر زندہ ہیں
جان بہت شرمندہ ہیں
افتخار عارف
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
مرے خدا مجھے اتنا تو معتبر کر دے
میں جس مکان میں رہتا ہوں اس کو گھر کر دے
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
دعا کو ہات اٹھاتے ہوئے لرزتا ہوں
کبھی دعا نہیں مانگی تھی ماں کے ہوتے ہوئے
افتخار عارف
दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
بیٹیاں باپ کی آنکھوں میں چھپے خواب کو پہچانتی ہیں
اور کوئی دوسرا اس خواب کو پڑھ لے تو برا مانتی ہیں
افتخار عارف
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
وفا کی خیر مناتا ہوں بے وفائی میں بھی
میں اس کی قید میں ہوں قید سے رہائی میں بھی
افتخار عارف
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी
मैं उस की क़ैद में हूँ क़ैद से रिहाई में भी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
دعائیں یاد کرا دی گئی تھیں بچپن میں
سو زخم کھاتے رہے اور دعا دئیے گئے ہم
افتخار عارف
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
इफ़्तिख़ार आरिफ़
عذاب یہ بھی کسی اور پر نہیں آیا
کہ ایک عمر چلے اور گھر نہیں آیا
افتخار عارف
अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया
कि एक उम्र चले और घर नहीं आया
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ستاروں سے بھرا یہ آسماں کیسا لگے گا
ہمارے بعد تم کو یہ جہاں کیسا لگے گا
افتخار عارف
सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा
हमारे बा'द तुम को ये जहाँ कैसा लगेगा
इफ़्तिख़ार आरिफ़
مٹی کی محبت میں ہم آشفتہ سروں نے
وہ قرض اتارے ہیں کہ واجب بھی نہیں تھے
افتخار عارف
मिट्टी की मोहब्बत में हम आशुफ़्ता-सरों ने
वो क़र्ज़ उतारे हैं कि वाजिब भी नहीं थे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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