Best Amjad Islam Amjad Urdu poetry | Amjad Islam Amjad Shayari | Amjad Islam Amjad Hindi Shayari | Best Urdu Poetry

Best Amjad Islam Amjad Urdu poetry 

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نہ آسماں سے نہ دُشمن کے زور و زَر سے ُہوا

یہ معجزہ تو مِرے دَستِ بے ہنر سے ُہوا


قدم اُٹھا ہے تو پاﺅں تلے زمیں ہی نہیں

سفر کا رنج ہمیں خواہشِ سفر سے ہوا


میں بھیگ بھیگ گیا آرزو کی بارش میں

وہ عکس عکس میں تقسیم چشمِ تر سے ہوا


سیاہی شب کی نہ چہروں پہ آ گئی ہو کہیں

سحر کا خوف ہمیں آئنوں کے ڈر سے ہوا


کوئی چلے تو زمیں ساتھ ساتھ چلتی ہے

یہ راز ہم پہ عیاں گردِ رہگزر سے ہوا


ترے بدن کی مہک ہی نہ تھی تو کیا رُکتے

گزر ہمارا کئی بار یوں تو گھر سے ہوا


کہاں پہ سُوئے تھے امجد کہاں کھُلیں آنکھیں

گماں قفس کا ہمیں اپنے بام و دَر سے ہوا

امجد اسلام امجد

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न स्वर्ग से और न शत्रु की शक्ति से

यह चमत्कार मेरे अकुशल हाथ से हुआ

यदि कोई कदम उठाया जाता है, तो यह पैरों के नीचे नहीं होता है

सफर का दर्द सफर की चाहत से आया


चाहतों की बारिश में भीग गया था मैं

वह प्रतिबिंब प्रतिबिंब में परिलक्षित होता था


हो सकता है कि स्याही रात के चेहरों पर न आई हो

आईने के डर से हम जादू से डरते थे


कोई चलता है तो जमीन साथ चलती है

यह रहस्य एक स्पष्ट मार्ग के माध्यम से हमारे साथ हुआ


अगर आपके शरीर की गंध न हो, तो आप क्या रोकेंगे?

हमारे साथ ऐसा कई बार घर से हुआ है


अमजद कहाँ सो रहा था उसकी आँखें कहाँ खुली थीं?

हमने अपनी छत और दरवाजे से पिंजरे के बारे में सोचा


अहमद इस्लाम अहमद





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کسی کی آنکھ جو پر نم نہیں ہے

نہ سمجھو یہ کہ اس کو غم نہیں ہے


سوادِ درد میں تنہا کھڑا ہوں

پلٹ جاؤں مگر موسم نہیں ہے


سمجھ میں کچھ نہیں آتا کسی کی

اگرچہ گفتگو مبہم نہیں ہے


سلگتا کیوں نہیں تاریک جنگل

طلب کی لو اگر مدھم نہیں ہے


یہ بستی ہے ستم پروردگاں کی

یہاں کوئی کسی سے کم نہیں ہے


کنارا دوسرا دریا کا جیسے

وہ ساتھی ہے مگر محرم نہیں ہے


دلوں کی روشنی بجھنے نہ دینا

وجودِ تیرگی محکم نہیں ہے


میں تم کو چاہ کر پچھتا رہا ہوں

کوئی اس زخم کا مرہم نہیں ہے


جو کوئی سن سکے امجد تو دنیا

بجز اک باز گشتِ غم نہیں ہے

امجد اسلام امجد


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किसी की आँख नम नहीं होती

यह मत सोचो कि वह उदास नहीं है


मैं दर्द में अकेला खड़ा हूं

वापस जाओ, लेकिन यह मौसम नहीं है


कोई भी नहीं समझता है

हालांकि बातचीत अस्पष्ट नहीं है


अँधेरा जंगल क्यों नहीं जलता?

पूछें कि क्या यह धुंधला नहीं है


यह ज़ुल्म करने वालों का शहर है

यहां कोई कम नहीं है



किनारा एक और नदी की तरह है

वह भागीदार है लेकिन महरम नहीं


दिलों की रोशनी को बुझने मत देना

तैरता हुआ प्राणी मजबूत नहीं होता


मैं तुम्हारे लिए तरस रहा हूँ

इस घाव का कोई इलाज नहीं है


अमजद को जो सुन सकता है वही दुनिया है

दुःख के अलावा कोई वापसी नहीं है


अहमद इस्लाम अहमद




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منظر کے اردگرد بھی اور آرپار دھُند

آئی کہاں سے آنکھ میں یہ بےشمار دھُند


کیسے نہ اُس کا سارا سفر رائیگاں رہے

جس کاروانِ شوق کی ہے راہگزار دھُند


ہے یہ جو ماہ و سال کا میلہ لگا ہوا

کرتی ہے اس میں چھپ کر مرا انتظار دھُند


آنکھیں وہ بزم، جس کا نشاں ڈولتے چراغ

دل وہ چمن کہ جس کا ہے رنگِ بہار دھُند


کمرے میں میرے غم کے سوا اور کچھ نہیں

کھڑکی سے جھانکتی ہے کسے بار بار دھُند


فردوسِ گوش ٹھہرا ہے مبہم سا کوئی شور

نظارگی کا شہر میں ہے اعتبار ، دھُند


ناٹک میں جیسے بکھرے ہوں کردار جابجا

امجد فضائے جاں میں ہے یوں بےقرار دھُند

امجد اسلام امجد

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घटनास्थल के आसपास भी कोहरा

आँखों में यह असंख्य कोहरा कहाँ से आया?


उसकी पूरी यात्रा कैसे व्यर्थ हो सकती है?

मार्ग के कारवां का कोहरा


यह है महीने और साल का त्योहार

वह उसमें छिप जाती है और कोहरे में इंतजार करते हुए मर जाती है


आंखें जो भिनभिनाती हैं, जिसकी निशानी है लहराता दीया

दिल वह घास है जिसमें वसंत कोहरे का रंग होता है


कमरे में मेरे दुख के सिवा कुछ नहीं है

कोई खिड़की से झाँकता है


फिरदौस घोष एक अस्पष्ट शोर है

नज़रों के शहर में है भरोसा, कोहरा


नाटक में पात्र बिखरे हुए हैं

जिंदगी के माहौल में हैं अमजद, इतना बेचैन कोहरा


अहमद इस्लाम अहमद




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کوئی بھی آدمی پورا نہیں ہے

کہیں آنکھیں، کہیں چہرا نہیں ہے


یہاں سے کیوں کوئی بیگانہ گزرے

یہ میرے خواب ہیں رستہ نہیں ہے


جہاں پر تھے تری پلکوں کے سائے

وہاں اب کوئی بھی سایا نہیں ہے


زمانہ دیکھتا ہے ہر تماشہ

یہ لڑکا کھیل سے تھکتا نہیں ہے


ہزاروں شہر ہیں ہمراہ اس کے

مسافر دشت میں تنہا نہیں ہے


یہ کیسے خواب سے جاگی ہیں آنکھیں

کسی منظر پہ دل جمتا نہیں ہے


جو دیکھو تو ہر اک جانب سمندر

مگر پینے کو اک قطرہ نہیں ہے


مثالِ چوبِ نم خوردہ، یہ سینہ

سلگتا ہے، مگر جلتا نہیں ہے


خدا کی ہے یہی پہچان شاید

کہ کوئی اور اس جیسا نہیں ہے

امجد اسلام امجد

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कोई भी आदमी परफेक्ट नहीं होता

कहीं आंखें नहीं, कहीं चेहरा नहीं


कोई अजनबी यहां से क्यों गुजरा?

ये मेरे सपने हैं, रास्ते नहीं


जहाँ गीली पलकों के साये थे

अब वहां कोई छाया नहीं है


समय हर तमाशा देखता है

यह आदमी खेलते-खेलते नहीं थकता


उसके साथ हज़ारों शहर हैं

यात्री रेगिस्तान में अकेला नहीं है


कैसे ये आंखें सपने से जगाई जाती हैं

दिल किसी सीन पर नहीं जमता


हर तरफ समंदर को देखो

लेकिन पीने के लिए एक बूंद नहीं है


एक उदाहरण गीली छड़ी है, यह छाती

जलता है, पर जलता नहीं


यही है ईश्वर की पहचान, शायद

उसके जैसा कोई और नहीं

अहमद इस्लाम अहमद




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زمین جلتی ہے اور آسمان ٹوٹتا ہے

مگر گریز کریں ہم تو مان ٹوٹتا ہے 


کوئی بھی کام ہو انجام تک نہیں جاتا !

کسی کے دھیان میں پَل پَل یہ دھیان ٹوٹتا ہے


کہ جیسے مَتن میں ہر لفظ کی ہے اپنی جگہ

جو ایک فرد کٹے، کاروان ٹوٹتا ہے


نژادِ صبح کے لشکر کی آمد آمد ہے

حصارِ حلقئہ شب زادگان ٹوٹتا ہے


اگر یہی ہے عدالت ! اور آپ ہیں مُنصِف!

عجب نہیں جو ہمارا بیان ٹوٹتا ہے


وفا کے شہر کے رستے عجیب ہیں امجد

ہر ایک موڑ پہ اِک مہربان ، ٹوٹتا ہے

امجد اسلام امجد

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धरती जलती है और आकाश टूट जाता है

लेकिन इससे बचें, हम अवज्ञाकारी हैं


कोई काम नहीं हुआ!

बार-बार किसी का ध्यान भटकता है


जैसा कि पाठ में प्रत्येक शब्द का अपना स्थान होता है

एक व्यक्ति कट जाता है, कारवां टूट जाता है


सुबह सेना का आगमन आ रहा है

शब ज़दगन की घेराबंदी टूट गई है


अगर यह अदालत है! और तुम न्यायाधीश हो!

कोई आश्चर्य नहीं कि हमारा बयान टूट जाता है


वफ़ा शहर के रास्ते भी अजीब हैं अमजदों

हर मोड़ पर, एक तरह का, टूटा हुआ


अहमद इस्लाम अहमद



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اُلجھن تمام عُمر یہ تارِ نفس میں تھی!

دِل کی مُراد عاشقی میں یا ہوس میں تھی!


دَر تھا کھُلا، پہ بیٹھے رہے پَر سمیٹ کر

کرتے بھی کیا کہ جائے اماں ہی قفس میں تھی!


سَکتے میں سب چراغ تھے’ تارے تھے دم بخُود!

مَیں اُس کے اختیار میں’ وہ میرے بس میں تھی


اَب کے بھی ہے ، جمی ہُوئی، آنکھوں کے سامنے

خوابوں کی ایک دھُند جو پچھلے برس میں تھی


کل شب تو اُس کی بزم میں ایسے لگا مجھے!

جیسے کہ کائنات مِری دسترس میں تھی


محفل میں آسمان کی بولے کہ چُپ رہے

امجد سدا زمین اسی پیش و پس میں تھی

امجد اسلام امجد

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जिंदगी भर इसी तार में उलझा रहा !

दिल की नीयत थी मोहब्बत या वासना में!


दरवाजा खुला था, वे उस पर बैठ गए और लुढ़क गए

कोई बात नहीं, माँ पिंजरे में थी!


डिब्बे में सारी बत्तियाँ थीं, तारे सब अपने आप थे!

मैं उसके वश में था वो मेरे बस में थी


अब भी जमे हुए, आँखों के सामने

पिछले साल से सपनों का कोहरा


कल रात मुझे उसकी सांसों में ऐसा लगा!

मानो ब्रह्मांड मेरी पहुंच के भीतर हो


पार्टी में, असमन ने कहा, "चुप रहो।"

अमजद हमेशा धरती में सबसे आगे थे


अहमद इस्लाम अहमद



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اُداسی میں گھِرا تھا دِل چراغِ شام سے پہلے

نہیں تھا کُچھ سرِ محفل چراغِ شام سے پہلے


حُدی خوانو، بڑھاؤ لَے، اندھیرا ہونے والا ہے

پہنچنا ہے سرِ منزل چراغِ شام سے پہلے


دِلوں میں اور ستاروں میں اچانک جاگ اُٹھتی ہے

عجب ہلچل، عجب جھِل مِل چراغِ شام سے پہلے


وہ ویسے ہی وہاں رکھی ہے ، عصرِ آخرِ شب میں

جو سینے پر دھری تھی سِل، چراغِ شام سے پہلے


ہم اپنی عُمر کی ڈھلتی ہُوئی اِک سہ پہر میں ہیں

جو مِلنا ہے ہمیں تو مِل، چراغِ شام سے پہلے


ہمیں اے دوستو اب کشتیوں میں رات کرنی ہے

کہ چھُپ جاتے ہیں سب ساحل، چراغِ شام سے پہلے


سَحر کا اوّلیں تارا ہے جیسے رات کا ماضی

ہے دن کا بھی تو مُستَقبِل، چراغِ شام سے پہلے


نجانے زندگی اور رات میں کیسا تعلق ہے !

اُلجھتی کیوں ہے اِتنی گلِ چراغِ شام سے پہلے


محبت نے رگوں میں کِس طرح کی روشنی بھر دی !

کہ جل اُٹھتا ہے امجد دِل، چراغِ شام سے پہلے

امجد اسلام امجد

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साँझ के दीये के सामने उदासी से घिर गया था दिल


शाम के दीप से पहले कोई पार्टी नहीं थी




हुदाई खाओ, बढ़ाओ, अंधेरा होने वाला है

शाम के दीपक से पहले गंतव्य पर पहुंचें


अचानक दिलों में और सितारों में जाग उठता है

शाम के दीपक से पहले अद्भुत हलचल, अद्भुत झील

उसे उसी तरह वहाँ रखा जाता है, देर रात

साँझ के दीये से पहले सीने पर मुहर


हम गिरती उम्र के बीच में हैं

शाम के दीया से पहले, जो मिलना है, उससे मिलते हैं

हमें तो नावों में ही रात गुजारनी है दोस्तों

कि सभी समुद्र तट शाम की रोशनी से पहले छिपे हुए हैं



सुबह का पहला तारा रात के अतीत की तरह होता है

शाम के उजाले से पहले दिन भी आगे है

ज़िंदगी और रात का क्या नाता है!

साँझ के दीये के आगे इतनी उलझन क्यों है?


रगों में क्या प्रेम का प्रकाश भर गया!

वो अमजद दाल शाम के दीये के आगे जलती है


अहमद इस्लाम अहमद




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کوئی بھی لمحہ کبھی لوٹ کر نہیں آیا

وہ شخص ایسا گیا پھر نظر نہیں آیا


وفا کے دشت میں رستہ نہیں ملا کوئی

سوائے گرد سفرہم سفر نہیں آیا


پَلٹ کے آنے لگے شام کے پرندے بھی

ہمارا صُبح کا بھُولا مگر نہیں آیا


کِسی چراغ نے پُوچھی نہیں خبر میری

کوئی بھی پھُول مِرے نام پر نہیں آیا


چلو کہ کوچہ قاتل سے ہم ہی ہو آئیں

کہ نخلِ دار پہ کب سے ثمر نہیں آیا!


خُدا کے خوف سے دل لرزتے رہتے ہیں

اُنھیں کبھی بھی زمانے سے ڈر نہیں آیا


کدھر کو جاتے ہیں رستے ، یہ راز کیسے کھُلے

جہاں میں کوئی بھی بارِ دگر نہیں آیا


یہ کیسی بات کہی شام کے ستارے نے

کہ چَین دل کو مِرے رات بھر نہیں آیا


ہمیں یقین ہے امجد نہیں وہ وعدہ خلاف

پہ عُمر کیسے کٹے گی ، اگر نہیں آیا

امجد اسلام امجد

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कोई लम्हा कभी वापस नहीं आया

वह आदमी ऐसे ही चलता रहा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा


वफ़ा के रेगिस्तान में किसी को रास्ता नहीं मिला

यात्रा के अलावा, हमने यात्रा नहीं की


शाम के पंछी भी लौटने लगे

हम अपनी सुबह भूल गए पर वो नहीं आई


कोई चिराग ने मेरी खबर नहीं पूछी

मेरे नाम पर कोई फूल नहीं आया


चलो सड़क हत्यारे से छुटकारा पाएं

खजूर के पेड़ पर कब फल नहीं लगे?


ईश्वर के भय से कांपते हैं हृदय

वह समय से कभी नहीं डरता


रास्ते कहाँ जाते हैं, कैसे खुलते हैं ये राज?

जहां फिर कोई नहीं आया


शाम के सितारे ने क्या कहा?

वो सुकून रातों-रात मेरे दिल में नहीं आया


हमारा मानना ​​है कि अमजद उस वादे के खिलाफ नहीं हैं

उम्र कैसे कटेगी, नहीं तो?


अहमद इस्लाम अहमद


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حد سے توقعات زیادہ کیے ہوئے

بیٹھے ہیں دل میں ایک ارادہ کیے ہوئے


اس دشت بے وفائی میں جائیں کہاں کہ ہم

ہیں اپنے آپ سے کوئی وعدہ کیے ہوئے


دیکھو تو کتنے چین سے کس درجہ مطمئن!

بیٹھے ہیں ارض پاک کو آدھا کیے ہوئے



پاؤں سے خواب باندھ کے شام وصال کے

اک دشت انتظار کو جادہ کیے ہوئے


آنکھوں میں لے کے جلتے ہوئے موسموں کی راکھ!

گرد سفر کو تن کا لبادہ کیے ہوئے


دیکھو تو کون لوگ ہیں!آئے کہاں سے ہیں !

اور اب ہیں کس سفر کا ارادہ کیے ہوئے


اس سادہ رُو کے بزم میں آتے ہی بجھ گئے

جتنے تھے اہتمام زیادہ کئے ہوئے


اُٹھے ہیں اُس کی بزم سے امجد ہزار بار

ہم ترک آرزو کا ارادہ کیے ہوئے

امجد اسلام امجد

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उम्मीद से ज्यादा

दिल में एक इरादा है


बेवफाई के इस रेगिस्तान में हम जहां भी जाएं

खुद से एक वादा किया है


देखिए आप चीन से कितने संतुष्ट हैं!

वे बैठे हैं, पवित्र भूमि को आधा कर रहे हैं


मौत की शाम के पैरों के सपने

एक रेगिस्तान प्रतीक्षा


जलते मौसमों की राख आँखों में ले लो!

एक लबादे में घूमना



देखो वे कौन हैं! वे कहाँ से आते हैं!

और अब आप किस यात्रा की योजना बना रहे हैं?


इस साधारण चेहरे के सामने आते ही वे बुझ गए

जितने इंतजाम किए गए थे


अमजद अपनी सांसों से हजार गुना उठ चुका है

हम छोड़ने का इरादा रखते हैं


अहमद इस्लाम अहमद




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کبھی رقص شام بہار میں اُسے دیکھتے

کبھی خواہشوں کے غُبار میں اُسے دیکھتے


مگر ایک نجم سحر نُما، کہیں جاگتا

ترے ہجر کی شب تار میں اُسے دیکھتے


وہ تھا ایک عکس گُریز پا، سو نہیں رُکا

کٹی عمر دشت و دیار میں اُسے دیکھتے


وہ جو بزم میں رہا بے خبر، کوئی اور تھا

شب وصل میرے کنار میں اُسے دیکھتے


جو ازل کی لوح پہ نقش تھا، وہی عکس تھا

کبھی آپ قریہ دار میں اُسے دیکھتے


وہ جو کائنات کا نور تھا، نہیں دور تھا

مگر اپنے قُرب و جوار میں اُسے دیکھتے


یہی اب جو ہے یہاں نغمہ خواں، یہی خوش بیاں

کسی شام کوئے نگار میں، اُسے دیکھتے


وہ تھا ایک عکس گُریز پا، سو نہیں رُکا

کٹی عمر دشت و دیار میں اُسے دیکھتے

امجد اسلام امجد

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मैं उसे शाम और बसंत में नाचता देखता था
कभी उसे ख्वाहिशों की धूल में देखना

लेकिन एक ज्योतिषी कहीं जाग जाएगा
हम उसे हज की रात में देखा करते थे

वह एक प्रतिवर्त था, इसलिए वह नहीं रुका
किट्टी उमर उसे रेगिस्तान में देखेगा

बज़्म में जो बेखबर रह गया वो कोई और था
मैं उसे रात में अपने पास देखता था

अनंत काल के टैबलेट पर छवि एक ही छवि थी
क्या तुमने कभी उसे गाँव में देखा है?

जो ब्रह्मांड का प्रकाश था वह दूर नहीं था
लेकिन वे उसे अपने आस-पास देखेंगे

यही मैं अभी यहाँ गा रहा हूँ, यह अच्छी खबर है
एक शाम कुएँ में, मैंने उसे देखा

वह एक प्रतिवर्त था, इसलिए वह नहीं रुका
किट्टी उमर उसे रेगिस्तान में देखेगा

अहमद इस्लाम अहमद

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