Saqi Farooqi Poetry | Urdu Ghazals | Shayari
Saqi Farooqi Urdu Poetry | Urdu Ghazals | Hindi Shayari | Saqi farooqi complete Shayari |
میں وہی دشت ہمیشہ کا ترسنے والا
تو مگر کون سا بادل ہے برسنے والا
سنگ بن جانے کے آداب سکھائے میں نے
دل عجب غنچہ نورس تھا بکسنے والا
حسن وہ ٹوٹتا نشہ کہ محبت مانگے
خون روتا ہے مرے حال پہ ہنسنے والا
رنج یہ ہے کہ ہنر مند بہت ہیں ہم بھی
ورنہ وہ شعلہ عصیاں تھا جھلسنے والا
وہ خدا ہے تو مری روح میں اقرار کرے
کیوں پریشان کرے دور کا بسنے والا
ساقی فاروقی
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मैं वही रेगिस्तान हूँ जो हमेशा डरता है
तो वह कौन सा बादल है जो बरसता है?
पत्थर बनने के गुर सिखाए मैंने
नॉर्स का दिल धड़क रहा था। नॉर्स एक बॉक्सर था
सुंदरता एक टूटी हुई दवा है जो प्यार मांगती है
खून रोता है, मरे हुओं पर हंसता है
दुख की बात यह है कि हम बहुत कुशल भी हैं
नहीं तो लौ जल रही थी
वह ईश्वर है, इसलिए उसे मृत आत्मा में स्वीकार करने दो
दूर के निवासी को परेशान क्यों?
साकी फ़ारूक़ी
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میں وہ ہوں جس پہ ابر کا سایہ نہیں پڑا
بنجر پڑا ہوا ہوں کوئی دیکھتا نہیں
میں تو خدا کے ساتھ وفادار بھی رہا
یہ ذات کا طلسم مگر ٹوٹتا نہیں
یوں ٹوٹتا ضرور بکھرتا ضرور ہوں
میں چاک پیرہن نہیں خونیں قبا نہیں
میں نے الجھ کے دیکھ لیا اپنی گونج سے
اب کیا صدا لگاؤں کوئی جاگتا نہیں
حد بندئ خزاں سے حصار بہار تک
جاں رقص کرسکے تو کوئی فاصلہ نہیں
ساقی فاروقی
मैं वह हूं जो बादलों से ढका नहीं है
मैं बंजर पड़ा हूं, कोई नहीं देखता
मैं भी भगवान के प्रति वफादार था
यह जाति का ताबीज नहीं टूटता
मुझे इस तरह तोड़ना और बिखेरना होगा
मैंने चाक नहीं पहना है, मैंने खूनी कोट नहीं पहना है
मैंने अपनी प्रतिध्वनि के साथ भ्रम देखा
अब कोई नहीं जागता
शरद ऋतु से वसंत तक की सीमा
अगर आप डांस कर सकते हैं तो कोई दूरी नहीं है
साकी फ़ारूक़ी
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میں تیرے ظلم دکھاتا ہوں اپنا ماتم کرنے کے لیے
مری آنکھوں میں آئے تری آنکھیں نم کرنے کے لیے
مٹی سے ہوا منسوب مگر آتش خانہ سا جلتا ہوں
کئی سورج مجھ میں ڈوب گئے مرا سایہ کم کرنے کے لیے
وہ یاد کے ساحل پر سارے موتی بکھرائے بیٹھی تھی
اک لہر لہو میں اٹھی تھی مجھے تازہ دم کرنے کے لیے
آج اپنے زہر سے کاٹ دیا سب زنگ پرانے لفظوں کا
آئندہ کے اندیشوں کی تاریخ رقم کرنے کے لیے
ممکن ہے کہ اب بھی ہونٹوں پر کوئی بھولا بسرا شعلہ ہو
میں جلتے جلتے راکھ ہوا لہجہ مدھم کرنے کے لیے
ساقی فاروقی
मैं शोक करने के लिए आपकी क्रूरता दिखाता हूं
गीली आँखे नम आँखों को नम करने आयी थी
धूल का कारण है, लेकिन आग की तरह जलता है
मौत की छाया को कम करने के लिए मुझमें डूबे कई सूरज
स्मृति के तट पर बिखरे थे सारे मोती
मुझे तरोताजा करने के लिए खून की एक लहर उठी
आज मैंने अपने जहर से पुराने शब्दों की सारी जंग काट दी
भविष्य की आशंकाओं के इतिहास को समेटने के लिए
होठों पर अब भी भूली हुई लौ हो सकती है
मैं स्वर को नरम करने के लिए जलकर राख हो गया
साकी फ़ारूक़ी
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میں ایک رات محبت کے سائبان میں تھا
مرا تمام بدن روح کی کمان میں تھا
دھنک جلی تھی فضا خون سے منور تھی
مرے مزاج کا اک رنگ آسمان میں تھا
جو سوچتا ہوں اسے دل میں پھول کھلتے ہیں
وہ خوش نگاہ نہیں تھا تو کون دھیان میں تھا
یہ حادثہ ہے کہ دونوں خزاں سرشت ہوئے
مگر بہار کا اک عہد درمیان میں تھا
مجھے عزیز رہی دشمنی کی تلخی بھی
اس ایک زہر سے کیا ذائقہ زبان میں تھا
ساقی فاروقی
मैं एक रात प्यार के साये में था
मेरा पूरा शरीर आत्मा के अधीन था
खून से जगमगा रहा था माहौल
मुरैना के मिजाज का रंग आसमान में था
मैं जो सोचता हूं उसके दिल में फूल खिलते हैं
वह खुश नहीं था, तो कौन परवाह करता है
यह एक दुर्घटना है कि दोनों गिर जाते हैं
लेकिन वसंत का एक युग बीच में था
दुश्मनी की कड़वाहट मुझे भी भाती थी
जीभ में इस एक जहर का क्या स्वाद था?
साकी फ़ारूक़ी
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مٹی تھی خفا موج اٹھا لے گئی ہم کو
گرداب میں ساحل کی بلا لے گئی ہم کو
ہم کب سے لپکتے ہوئے شعلوں میں کھڑے ہیں
اس آگ میں اک گل کی ہوا لے گئی ہم کو
اک سرو کی خوش قامتی آنکھوں میں بسی تھی
جو ذلت دنیا سے بچا لے گئی ہم کو
سائے کے تعاقب میں گنوائی ہے مگر عمر
ہر سمت وہی ایک صدا لے گئی ہم کو
تو جان محبت ہے مگر تیری طرف بھی
اک خواہش تشہیر وفا لے گئی ہم کو
ساقی فاروقی
धूल गुस्से में थी और हमें दूर ले गई
हमें समुद्र तट पर एक भँवर में बुलाया गया था
हम कब से आग की लपटों में खड़े हैं?
इस आग में एक फूल की हवा हमें ले गई
सरू की आँखों में ख़ुशी की झलक थी
वो अपमान जिसने हमें दुनिया से बचा लिया
छाया की खोज में खो जाता है, लेकिन उम्र
एक ही आवाज हमें हर दिशा में ले गई
तुम प्यार हो, लेकिन तुम्हारे प्रति भी
प्रचार की इच्छा ने हमें ले लिया है
साकी फ़ारूक़ी
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موت نے پردا کرتے کرتے پردا چھوڑ دیا
میرے اندر آج کسی نے جینا چھوڑ دیا
خوف کہ رستہ بھول گئی امید کی اجلی دھوپ
اس لڑکی نے بالکنی پر آنا چھوڑ دیا
روز شکایت لے کر تیری یاد آجاتی ہے
جس کا دامن آہستہ آہستہ چھوڑ دیا
دنیا کی بے راہ روی کے افسانے لکھے
اور اپنی دنیا داری کا قصہ چھوڑ دیا
بس تتلی کا کچا کچا رنگ آنکھوں میں ہے
زندہ رہنے کی خواہش نے پیچھا چھوڑ دیا
ساقی فاروقی
मौत का अनावरण
आज किसी ने मुझे जिंदा छोड़ दिया
रास्ता भटक गया डर, आशा का घातक सूरज
लड़की ने बालकनी में आना बंद कर दिया
मैं आपको हर दिन एक शिकायत के साथ याद करता हूं
जो धीरे-धीरे पैर छोड़ गया
दुनिया के पथभ्रष्ट व्यवहार के बारे में कहानियाँ लिखें
और छोड़ गए अपनी दुनियादारी की कहानी
बस तितली का कच्चा रंग आँखों में होता है
पीछे छूट गई जीने की तमन्ना
साकी फ़ारूक़ी
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مرا اکیلا خدا یاد آرہا ہے مجھے
یہ سوچتا ہوا گرجا بلا رہا ہے مجھے
مجھے خبر ہے کہ اک مشت خاک ہوں پھر بھی
تو کیا سمجھ کے ہوا میں اڑا رہا ہے مجھے
یہ کیا طلسم ہے کیوں رات بھر سسکتا ہوں
وہ کون ہے جو دیوں میں جلا رہا ہے مجھے
اسی کا دھیان ہے اور پیاس بڑھتی جاتی ہے
وہ اک سراب کہ صحرا بنا رہا ہے مجھے
میں آنسوؤں میں نہایا ہوا کھڑا ہوں ابھی
جنم جنم کا اندھیرا بلا رہا ہے مجھے
ساقی فاروقی
मुझे अपने इकलौते भगवान की याद आती है
यह सोच चर्च मुझे बुला रहा है
मुझे पता है कि मैं अभी भी एक मुट्ठी भर हूँ
तो मुझे समझ की हवा में क्या उड़ा रहा है?
क्या ताबीज है, मैं पूरी रात क्यों सो सकता हूँ?
मुझे आग में कौन जला रहा है?
यही फोकस और प्यास बढ़ती है
वो मृगतृष्णा मुझे रेगिस्तान बना रही है
मैं अभी आँसू में खड़ा हूँ
जन्म का अँधेरा मुझे बुला रहा है
साकी फ़ारूक़ी
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مجھ کو مری شکست کی دوہری سزا ملی
تجھ سے بچھڑ کے زندگی دنیا سے جا ملی
اک قلزم حیات کی جانب چلی تھی عمر
اک دن یہ جوئے تشنگی صحرا سے آ ملی
یہ کیسی بے حسی ہے کہ پتھر ہوئی ہے آنکھ
ویسے تو آنسوؤں کی کمک بارہا ملی
میں کانپ اٹھا تھا خود کو وفادار دیکھ کر
موج وفا کے پاس ہی موج فنا ملی
دیوار ہجر پر تھے بہت صاحبوں کے نام
یہ بستی فراق بھی شہرت سرا ملی
پھر رود بے وفائی میں بہتا رہا یہ جسم
یہ رنج ہے کہ تیری طرف سے دعا ملی
وہ کون خوش نصیب تھے جو مطمئن پھرے
مجھ کو تو اس نگاہ سے عسرت سوا ملی
یہ عمر عمر کوئی تعاقب میں کیوں رہے
یادوں میں گونجتی ہوئی کس کی صدا ملی
جس کی ہوس کے واسطے دنیا ہوئی عزیز
واپس ہوئے تو اس کی محبت خفا ملی
ساقی فاروقی
मुझे मिली मौत की दोहरी सजा
तुमसे एक बछड़े की जान चली गई
उमर एक लाल जीवन की ओर बढ़ गया था
एक दिन प्यासे रेगिस्तान से आया यह जुआ
कितनी संवेदनहीन है आँख पर पत्थर !
वैसे तो बार-बार मेरे आंसू आ गए
मैं खुद को वफादार देखकर कांप उठा
मोज वफ़ा के पास मिली थी तबाही की लहर
हजारी की दीवार पर कई आचार्यों के नाम थे
अलग होने के लिए भी मशहूर हुआ ये शहर
फिर यह शरीर बेवफाई की नदी में बहता रहा
यह अफ़सोस की बात है कि मुझे आपसे प्रार्थना मिली
खुशनसीब कौन थे जो संतुष्ट होकर लौटे?
मुझे उस लुक के साथ कठिन समय था
पीछा करने में यह उम्र क्यों रह गई?
जिनकी आवाज़ यादों में गूँजती थी
किसकी वासना से संसार प्रिय हो गया
जब वह लौटा, तो उसका प्यार क्रोधित हो गया
साकी फ़ारूक़ी
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لوگ تھے جن کی آنکھوں میں اندیشہ کوئی نہ تھا
میں جس شہر سے گزرا اس میں زندہ کوئی نہ تھا
چیزوں کے انبار لگے تھے خلق آرام سے تھی
اور مجھے یہ رنج وہاں افسردہ کوئی نہ تھا
حیرانی میں ہوں آخر کس کی پرچھائیں ہوں
وہ بھی دھیان میں آیا جس کا سایہ کوئی نہ تھا
چونک پڑا جب یادوں میں اس کی آواز سنی
بس اپنی ہی گونج تھی مجھ میں ورنہ کوئی نہ تھا
میں جس خوف میں تھا اس میں کچھ اور بھی قیدی تھے
میں جس خواب میں تھا اس میں دروازہ کوئی نہ تھا
ساقی فاروقی
ऐसे लोग भी थे जिनकी आँखों में कोई डर नहीं था
मैं जिस शहर से गुज़रा उस शहर में कोई ज़िंदा नहीं था
ढेर सारी चीज़ें थीं और लोग आराम से थे
और मुझे वहाँ वह उदासी नहीं थी
मुझे आश्चर्य है कि मैं किसकी छाया हूँ
उसका भी ख्याल आया जिसका कोई साया नहीं था
अपनी यादों में उसकी आवाज सुनकर मैं चौंक गया था
बस मेरी ही प्रतिध्वनि थी, नहीं तो मुझमें कोई नहीं था
मेरे डर में और भी कैदी थे
मेरे सपने में कोई दरवाजा नहीं था
साकी फ़ारूक़ी
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عمر انکار کی دیوار سے سر پھوڑتی ہے
رنج یہ ہے اسے آیا نہ سلیقہ اپنا
ایک دن رات کے اسرار کھلیں گے ہم پر
شک کی بوچھار سے چھلنی ہوا سینہ اپنا
خرد بینوں سے کئی داغ چھپائے اپنے
غم گساروں نے کوئی بھید نہ پایا اپنا
اپنی کھوئی ہوئی آواز رسائی مانگے
جاں اسے الجھا ہے کوئی نغمہ رسیلا اپنا
نیند وہ ریت کی دیوار کہ مسمار ہوئی
اپنی آنکھوں میں چھپا رکھا ہے صحرا اپنا
زندگی ایک گزرتی ہوئی پرچھائیں ہے
آئنہ دیکھتا رہتا ہے تماشا اپنا
برگ آواز کے مانند اڑیں گے یہ پہاڑ
غرق ہوجائے گا پانی میں جزیرہ اپنا
خواب دیکھا تھا کہ ہم ہوں گے بچھڑنے والے
منہدم ہوگئے پر خواب نہ ٹوٹا اپنا
چاند کی طرح کئی داغ ہیں پیشانی پر
موت کے سامنے مہتاب ہے چہرا اپنا
ساقی فاروقی
उमर इनकार की दीवार के खिलाफ अपना सिर धक्का
अफ़सोस इस बात का है कि उसका अपना कोई अंदाज़ नहीं था
एक दिन रात के रहस्य हमारे सामने खुलेंगे
संदेह की बौछार से तुम्हारा सीना फूल गया
अपने माइक्रोस्कोप से कई निशान छुपाएं
शोक मनाने वालों को कोई रहस्य नहीं मिला
अपनी खोई हुई आवाज़ तक पहुँच के लिए पूछें
वह अपने ही एक गाने में उलझा हुआ है
सो जाओ उस रेत की दीवार जो गिर गई
उसने अपनी आँखों में अपना रेगिस्तान छिपा रखा है
जीवन एक गुजरती छाया है
आईना तो अपना ही तमाशा देखता रहता है
पत्तों की आवाज की तरह उड़ेंगे ये पहाड़
आपका टापू पानी में डूब जाएगा
मैंने सपना देखा कि हम अलग हो जाएंगे
वो टूट गए पर सपना टूटा नहीं
माथे पर चाँद जैसे कई धब्बे होते हैं
मौत के आगे महताब का चेहरा
साकी फ़ारूक़ी
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شہر کا شہر ہوا جان کا پیاسا کیسا
سانس لیتا ہے مرے سامنے صحرا کیسا
مرے احساس میں یہ آگ بھری ہے کس نے
رقص کرتا ہے مری روح میں شعلہ کیسا
تیری پرچھائیں ہوں نادان جدائی کیسی
میری آنکھوں میں پھرا خوف کا سایہ کیسا
اپنی آنکھوں پہ تجھے اتنا بھروسہ کیوں ہے
تیرے بیمار چلے تو ہے مسیحا کیسا
یہ نہیں یاد کہ پہچان ہماری کیا ہے
اک تماشے کے لیے سوانگ رچایا کیسا
مت پھری تھی کہ حریفانہ چلے دنیا سے
سوچتے خاک کہ مواج ہے دریا کیسا
صبح تک رات کی زنجیر پگھل جائے گی
لوگ پاگل ہیں ستاروں سے الجھنا کیسا
دل ہی عیار ہے بے وجہ دھڑک اٹھتا ہے
ورنہ افسردہ ہواؤں میں بلاوا کیسا
آج خاموش ہیں ہنگامہ اٹھانے والے
ہم نہیں ہیں تو کراچی ہوا تنہا کیسا
ساقی فاروقی
कैसे बन गया जीवन का प्यासा शहर
मरे के सामने रेगिस्तान कैसे सांस लेता है
मरे के होश में यह आग किसने भरी है?
मृत आत्मा में लौ कैसे नाचती है
तेरी छाया कितनी नादान है
मेरी आँखों में क्या डर का साया है
आपको अपनी आँखों पर इतना भरोसा क्यों है?
आपका मसीहा कितना बीमार है!
मुझे याद नहीं है कि हमारी पहचान क्या है
एक शो के लिए एक तमाशा कैसे बनाएं
प्रतिद्वंद्विता को दुनिया से न जाने दें
मुझे आश्चर्य है कि नदी कैसी है
सुबह तक पिघल जाएगी रात की जंजीरें
सितारों को भ्रमित करने के लिए लोग दीवाने हैं
दिल अच्छा है, बिना वजह धड़कता है
वरना उदास हवाओं में कैसे बुलाऊँ
आज दंगाई खामोश है
अगर हम नहीं हैं तो कराची अकेला कैसे हो सकता है?
साकी फ़ारूक़ी
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